
(Ganpati bappa morya in hindi) गणपति बप्पा मोरया का अर्थ: आपने कई बार सुना होगा - "गणपति बप्पा मोरया" लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसका क्या मतलब है। इस लेख में हम मोरया के पीछे के तथ्यों और कहानियों के साथ समझाने जा रहे हैं। आइए इसकी शुरुआत "गणपति बप्पा मोरया मंगल मूर्ति मोरया" कहकर करते हैं।
गणपति बप्पा मोरया का अर्थ (Ganpati bappa morya in hindi)
इस लेख में हम "गणपति बप्पा मोरया के अर्थ" से जुड़े तथ्यों और कहानियों के बारे में जानेंगे। चलिए अब शुरू करते हैं ।
मोरया के पीछे की कहानी और तथ्य
मोरया नाम के पीछे का रहस्य मोरया गोसावी से जुड़ा है (जो भगवान गणेश, गणपति बप्पा, के भक्त थे)।
ऐसा कहा जाता है कि 14वीं शताब्दी में मोरया गोसावी पुणे के पास चिंचवाड़ में रहते थे। मोरया गोसावी ने चिंचवाड़ में कठोर गणेश साधना की थी।
ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने यहीं जीवित समाधि ली थी। तभी से यहां का गणेश मंदिर पूरे देश में प्रसिद्ध हो गया और गणेश भक्त गणपति के साथ-साथ मोरया का नाम भी जपने लगे।
आइए विस्तार से समझते हैं कि मोरया गोसावी कौन थे और इनसे जुड़ी कहानी क्या है।
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मयूरेश्वर और मोरया गोसावी की कथा
गणेश पुराण के अनुसार, देवताओं ने सिंधु राक्षस को हराने के लिए भगवान गणेश का आह्वान किया और गणेश जी ने छह भुजाओं वाले देवता का रूप धारण करके मोर को अपना वाहन चुना।
मोरगांव में गणेश की पूजा मयूरेश्वर के रूप में की जाती है, जिसे मराठी में मोरेश्वर भी कहा जाता है।
कहानी यह है कि वामनभट और पार्वती के पुत्र मोरया , मयूरेश्वर के भक्त थे और उन्होंने थेउर में तपस्या की और सिद्ध की अवस्था प्राप्त की।
मोरया गोसावी एक प्रसिद्ध संत बन गए, उन्होंने चिंचवाड़ में एक आश्रम की स्थापना की, जहाँ उन्होंने धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियाँ कीं। वे हर साल गणेश चतुर्थी पर मयूरेश्वर मंदिर जाते थे और गणेश से प्रेरित होकर अपने आश्रम में एक मूर्ति स्थापित की, बाद में वहीं समाधि ले ली।
उनके बेटे चिंतामणि ने उनकी समाधि पर एक मंदिर बनवाया और आस-पास के गणेश मंदिरों के रख-रखाव में भी योगदान दिया।
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मोरया गोसावी का जन्म और परिवर्तन - एक और कहानी
किंवदंती है कि मोरया का जन्म शालिग्राम उपनाम वाले देशस्थ ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
उनके माता-पिता, भट्ट शालिग्राम और उनकी पत्नी, बीदर से मोरगांव चले गए थे, जहाँ उन्होंने भगवान गणेश की पूजा की। उनकी प्रार्थना के बाद, मोरया का जन्म हुआ।
तभी, मोरया की तबीयत खराब हो गई और वे गंभीर रूप से बीमार पड़ गए।
समाधान के लिए उनके माता-पिता ने गणेश जी से प्रार्थना की। तभी नयन भारती, जो की एक पूजनीय गोसावी थे आए और मोरया को दवा दी, जिससे उनकी बीमारी ठीक हो गई।
नयन भारती का प्रभाव सिर्फ़ उपचार तक ही सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने मोरया को आध्यात्मिक ज्ञान भी दिया।
इस मुलाकात का भट्ट परिवार पर गहरा असर पड़ा, जिसके कारण उन्होंने अपना उपनाम गोसावी रख लिया।
तब से मोरया को मोरया गोसावी के नाम से जाना जाने लगा, जो भगवान गणेश के एक भक्त के रूप में उनकी यात्रा की शुरुआत थी।
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मोरया गोसावी ने अष्टविनायक यात्रा की शुरुआत की
उन्होंने मयूरेश्वर से अष्टविनायक यात्रा की शुरुआत की, और आठ पड़ावों में शामिल हैं:
- मोरगांव
- सिद्धटेक
- पाली
- महाद
- थेउर
- लेन्याद्री
- ओजर
- रंजनगांव
मोरगांव का नाम इस क्षेत्र में मोरों की बहुतायत से उत्पन्न हुआ है, और यह मयूरेश्वर की सिद्ध मूर्ति का घर है।
आइए यह भी समझें कि सबसे पहले गणेश की पूजा क्यों की जाती है और क्यों कुछ लोग भगवान गणेश जी को सर्वोच्च भगवान मानते हैं।
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क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि अष्टविनायक का सही क्रम क्या है?
- मोरगांव में मोरेश्वर मंदिर - आरंभ और अंत ।
- सिद्धटेक में सिद्धिविनायक मंदिर - एकमात्र मंदिर जहां गणेश जी की सूंड दाईं ओर है। जो की अपने आप में दुर्लभ है
- पाली में बल्लालेश्वर मंदिर।
- महाद में वरद विनायक मंदिर।
- थेउर में चिंतामणि मंदिर।
- लेन्याद्री में गिरिजात्मज मंदिर।
- ओजर में विघ्नहर मंदिर।
- रंजनगांव में महागणपति मंदिर।
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हिंदू संप्रदाय और गणपति मान्यताएँ - गणेश जी परम शक्ति क्यों हैं, यहाँ तक कि अपने पिता भगवान शिव से भी बढ़कर?
आइए हिंदू संप्रदायों को समझें - हिंदू समाज पारंपरिक रूप से चार मुख्य संप्रदायों में विभाजित है:
- शैव,
- शाक्त,
- वैष्णव और
- गणपति।
प्रत्येक संप्रदाय की अपनी अनूठी मान्यताएँ और पूजा पद्धतियाँ हैं।
तो गणपत्य / गणपति संप्रदाय क्या है?
गणपत्य/गणपति संप्रदाय भगवान गणेश की पूजा के लिए समर्पित है। इस संप्रदाय के अनुयायी गणपत्य कहलाते हैं और मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक में पाए जाते हैं।
इसके पीछे मुख्य मान्यता क्या है?
गणपत्य मानते हैं कि गणेश सर्वोच्च शक्ति हैं और यह मान्यता एक पौराणिक संदर्भ में निहित है।
किंवदंती के अनुसार, शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया, लेकिन उसके तीन पुत्रों ने उसकी मृत्यु का बदला लेने की कसम खाई।
इसके पीछे पौराणिक संदर्भ भी है
तारकासुर के पुत्र तारकाक्ष, कामाक्ष और विद्युन्माली ने ब्रह्मा की पूजा की और उन्हें तीन नगर दिए गए, जिससे उनका नाम त्रिपुरासुर या पुरात्रय पड़ा।
दिलचस्प बात यह है कि त्रिपुरासुर को मारने से पहले शिव ने गणेश की पूजा की और उन्हें गणपतियों की नज़र में सर्वोच्च देवता बना दिया।
यह पौराणिक संदर्भ गणपतियों की मान्यता का आधार बनता है कि गणेश परम शक्ति हैं, यहाँ तक कि शिव से भी बढ़कर।
यह अनूठी मान्यता गणपतियों के संप्रदाय को अन्य हिंदू संप्रदायों से अलग करती है।
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