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Somvati amavasya aarti | Pitra dev ki aarti | सोमवती अमावस्या पर करें ये विशेष आरती, दूर होगी हर बाधा

Published By: bhaktihome
Published on: Monday, September 2, 2024
Last Updated: Monday, September 2, 2024
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Somvati amavasya aarti
Table of contents

सोमवती अमावस्या आरती (Somvati amavasya aarti), pitra dev ki aarti (पितृ देव की आरती ): सोमवती अमावस्या पर करें ये विशेष आरती, पितृ दोष के साथ दूर होगी हर बाधा।

Do this special Aarti on Somvati Amavasya, every obstacle will be removed along with Pitra Dosh.

 

Somvati amavasya aarti | सोमवती अमावस्या आरती

पितृ देव की आरती (Pitra dev ki aarti )


जय जय पितर जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी,

शरण पड़ा हूं तुम्हारी देवा, रख लेना लाज हमारी,

जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।

 

आप ही रक्षक आप ही दाता, आप ही खेवनहारे,

मैं मूरख हूं कछु नहिं जानू, आप ही हो रखवारे,

जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।

 

आप खड़े हैं हरदम हर घड़ी, करने मेरी रखवारी,

हम सब जन हैं शरण आपकी, है ये अरज गुजारी,

जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।

 

देश और परदेश सब जगह, आप ही करो सहाई,

काम पड़े पर नाम आपके, लगे बहुत सुखदाई,

जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।

 

भक्त सभी हैं शरण आपकी, अपने सहित परिवार,

रक्षा करो आप ही सबकी, रहूं मैं बारम्बार,

जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।

 

जय जय पितर जी महाराज, मैं शरण पड़ा हू तुम्हारी,

शरण पड़ा हूं तुम्हारी देवा, रखियो लाज हमारी,

जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।

 

Somvati amavasya aarti / Shiv ji Aarti

।।शिव जी की आरती।।


जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।

ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥

 

एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।

हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥

 

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।

त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥

 

अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।

चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥

 

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।

सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥

 

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।

जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥

 

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।

प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥

 

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।

नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥

 

त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।

कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥

 

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