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ऋषि पंचमी व्रत कथा | 3 कथाएँ | ऋषि पंचमी कथा | Rishi panchami vrat katha | Rishi panchami katha

Published By: bhaktihome
Published on: Friday, August 30, 2024
Last Updated: Friday, August 30, 2024
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Rishi panchami vrat katha
Table of contents

ऋषि पंचमी व्रत कथा (Rishi panchami vrat katha), ऋषि पंचमी कथा (Rishi panchami katha) - यहाँ हम ऋषि पंचमी से सम्बंधित कथाये जो बहुत प्रचलित हैं बताने जा रहे हैं। बहतु सारी जगहों पे 3 कथाएं कही जाती हैं इससे व्रत का फल  3 गुना मिलता है ।

 

ऋषि पंचमी व्रत कथा (Rishi panchami vrat katha), ऋषि पंचमी कथा (Rishi panchami katha)

ऋषि पंचमी व्रत कथा (Rishi panchami vrat katha) या ऋषि पंचमी कथा (Rishi panchami katha) शुरू करने से पहले सप्त ऋषियों का ध्यान करें और ये मंत्र कहें ।

कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः।

जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥

दहन्तु पापं सर्व गृह्नन्त्वर्ध्यं नमो नमः॥

इस मंत्र में कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि, वशिष्ठ आदि ऋषियों के नाम हैं। अगर मंत्र नहीं कह पा रहे हों तो इन ऋषियों का नाम लें - हे ऋषि कश्यप, ऋषि  अत्रि, ऋषि भारद्वाज, ऋषि विश्वामित्र, ऋषि  गौतम, ऋषि जमदग्नि, ऋषि वशिष्ठ आप हमारी पूजा में आएं । 

 

ऋषि पंचमी कथा -1 

सतयुग में विदर्भ नगर में श्येनजित नामक एक राजा था। वह ऋषितुल्य थे। 

उसके राज्य में सुमित्रा नाम का एक किसान था। उसकी पत्नी जयश्री बहुत पतिव्रता थी। एक बार वर्षा ऋतु में जब उसकी पत्नी खेती में व्यस्त थी, तो वह रजस्वला हो गई। 

उसे पता चल गया कि वह रजस्वला है, फिर भी वह घर के काम-काज में लगी रही। 

कुछ समय बाद पुरुष और स्त्री दोनों ने अपना पूरा जीवन जीया और मर गए। 

जयश्री कुतिया बनी और सुमित्रा रजस्वला स्त्री के संपर्क में आने के कारण बैल की योनि को प्राप्त हुई, क्योंकि रजस्वला दोष के अलावा उन दोनों में कोई दोष नहीं था। 

इस कारण उन दोनों को अपने पूर्वजन्म का सारा विवरण याद हो गया। वे दोनों अपने पुत्र सुचित्र के साथ कुतिया और बैल के रूप में उसी नगर में रहने लगीं। ध

र्मात्मा सुचित्र अपने अतिथियों का पूरा आदर-सत्कार करता था। अपने पिता के श्राद्ध के दिन उसने ब्राह्मणों के खाने के लिए अनेक प्रकार के भोजन बनवाए। 

जब उसकी पत्नी किसी काम से रसोई से बाहर गई हुई थी, तो रसोई में खीर के बर्तन में एक साँप ने जहर उगल दिया। सुचित्र की माँ कुतिया के रूप में दूर से सब कुछ देख रही थी। 

जब उसके बेटे की बहू आई, तो उसने अपने बेटे को ब्रह्महत्या के पाप से बचाने के लिए उस बर्तन में अपना मुँह डाल दिया। 

सुचित्र की पत्नी चंद्रावती कुतिया के इस कृत्य को नहीं देख सकी और उसने चूल्हे से जलती हुई लकड़ी निकाली और कुतिया पर मार दी। 

बेचारी कुतिया मार खाकर इधर-उधर भागने लगी। सुचित्र की बहू रसोई में जो भी बचा हुआ खाना आदि बच जाता था, उसे कुतिया को खिला देती थी, लेकिन क्रोध के कारण वह भी बाहर फेंक देती थी। 

सारा खाद्य पदार्थ फिकवाकर, बर्तन साफ ​​करके उसने फिर से भोजन पकाया और ब्राह्मणों को खिला दिया। 

रात के समय कुतिया भूख से व्याकुल होकर अपने पूर्व पति के पास जो बैल के रूप में रह रहा था, आई और बोली, हे प्रभु! आज मैं भूख से मर रही हूँ। यद्यपि मेरा पुत्र मुझे प्रतिदिन भोजन देता था, किन्तु आज मुझे कुछ नहीं मिला। मैंने अनेक ब्रह्महत्या के भय से सर्पविष युक्त खीर के बर्तन को छूकर उसे अभक्ष्य बना दिया था। 

इसी कारण उसकी पुत्रवधू ने मुझे मारा-पीटा तथा खाने को कुछ नहीं दिया। 

तब बैल ने कहा, हे भद्रे! तुम्हारे पापों के कारण ही मैं भी इस योनि में आया हूँ तथा आज भार ढोते-ढोते मेरी कमर टूट गई है।

आज मैं भी सारा दिन खेत जोतता रहा। मेरे पुत्र ने आज मुझे भोजन नहीं दिया तथा मुझे बहुत मारा भी। इस प्रकार मुझे कष्ट देकर उसने इस श्राद्ध को निष्फल कर दिया। 

अपने माता-पिता की ये बातें सुचित्र सुन रहा था, उसने उन दोनों को एक ही समय में भरपेट भोजन कराया तथा उनके कष्ट से दुखी होकर वन की ओर चला गया। 

वन में जाकर उसने ऋषियों से पूछा कि किन कर्मों के कारण मेरे माता-पिता इन निम्न योनियों को प्राप्त हुए हैं तथा अब उन्हें मुक्ति कैसे मिलेगी। 

तब सर्वात्मा ऋषि ने कहा कि उनके उद्धार के लिए तुम अपनी पत्नी सहित ऋषि पंचमी का व्रत करो और उसका फल अपने माता-पिता को दो। 

भाद्रपद मास की शुक्ल पंचमी को दोपहर के समय मुंह साफ करके नदी के पवित्र जल में स्नान करो और नए रेशमी वस्त्र पहनकर अरुंधती सहित सप्तर्षियों का पूजन करो। 

यह सुनकर सुचित्र अपने घर लौट आया और विधि-विधान से पत्नी सहित व्रत का पूजन किया। उसके पुण्य के प्रभाव से उसके माता-पिता दोनों पशु योनि से मुक्त हो गए। 

अत: जो स्त्री भक्तिपूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत करती है, वह सभी सांसारिक सुखों को भोगकर वैकुंठ को जाती है।

 

ऋषि पंचमी कथा - 2

एक कथा के अनुसार एक बार राजा सीताश्व धर्म का मर्म जानने के लिए ब्रह्माजी के पास गए और उनसे सभी पापों का नाश करने वाले व्रत के बारे में बताने को कहा।

इस पर ब्रह्माजी ने उन्हें ऋषि पंचमी व्रत के बारे में जानकारी दी और कथा सुनाई।

उन्होंने बताया कि विदर्भ में उत्तंक नामक एक सदाचारी ब्राह्मण रहता था। 

उसकी पत्नी का नाम सुशीला था और वह पतिव्रता स्त्री थी। उसके एक पुत्र और एक पुत्री थी, यानी कुल दो संतानें थीं। 

जब कन्या विवाह योग्य हुई तो ब्राह्मण ने उसका विवाह कर दिया, हालांकि कुछ समय बाद उस पर विपत्ति आ गई और वह विधवा हो गई। 

इस पर दुखी ब्राह्मण दंपत्ति ने नदी किनारे एक झोपड़ी बनाई और अपनी पुत्री के साथ रहने लगे।

इसी बीच एक दिन कन्या सो रही थी, तभी उसके शरीर में कीड़े पड़ गए।

उसने यह बात अपनी मां को बताई। मां ने यह बात अपने पति को बताई और पूछा कि उनकी पुत्री को यह दुख क्यों भोगना पड़ रहा है। 

उत्तंक ने ध्यान करके पता लगाया कि पिछले जन्म में यह कन्या ब्राह्मण थी और रजस्वला होने पर भी बर्तन छूती थी। 

यद्यपि उसे यह जन्म उस पाप का फल भोगने के लिए मिला है, फिर भी उसने ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया। 

इसी कारण उसके शरीर में कीड़े पड़ गए हैं। 

ब्राह्मण ने बताया कि रजस्वला स्त्री पहले दिन चांडालिनी के समान, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी के समान, तीसरे दिन धोबिन के समान तथा चौथे दिन स्नान करके पवित्र हो जाती है। 

यदि वह अब भी ऋषि पंचमी का व्रत रखे तो उसके दुख दूर हो जाएंगे तथा अगले जन्म में उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी। 

पिता की आज्ञा से कन्या ने ऋषि पंचमी का व्रत रखा। इससे उसके दुख दूर हो गए तथा उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई।

 

ऋषि पंचमी कथा - 3

एक बार एक ब्राह्मण और ब्राह्मणी संतान प्राप्ति के लिए सप्त ऋषि का व्रत रखते थे और जब उन्हें संतान के रूप में एक पुत्री प्राप्त हुई तो उन्होंने उससे भी यह व्रत करवाना शुरू कर दिया। 

इसके बाद उन्होंने उसका विवाह भी एक ऐसे व्यक्ति से करवा दिया जो उनके घर में जमाई बनकर रहता था। ससुर और जमाई दोनों मिलकर खेतों में काम करने लगे। 

ब्राह्मण ने ब्राह्मणी से कहा कि उसके लिए खीर और जमाई के लिए रबड़ी ले आओ, ब्राह्मणी भी वैसा ही करने लगी। 

एक दिन जब ब्राह्मण को काम के लिए बाहर जाना पड़ा तो ब्राह्मणी भोजन लेकर आई और जमाई से कहा कि एक बर्तन में भोजन तुम्हारे ससुर का है और दूसरे में तुम्हारा। 

यह सुनकर जमाई ने सोचा कि यह अपने ससुर के लिए क्या लाई है जो उसने कह दिया कि यह तुम्हारा है और यह तुम्हारे ससुर का।

दामाद ने अपने ससुर का बर्तन खोला और उसमें खीर देखी, खीर देखते ही उसका मन ललचाने लगा और उसने खीर खा ली। 

जब ब्राह्मण ने आकर देखा कि दामाद ने खीर खा ली है तो वह क्रोधित हो गया और कुल्हाड़ी से दामाद के सात टुकड़े कर दिए और उन्हें सात अलग-अलग स्थानों पर छिपा दिया।

ब्राह्मण की बेटी का पति तीन दिन तक घर नहीं आया तो सप्त ऋषियों ने सोचा कि उसका व्रत तुड़वाना जरूरी है। 

इसके लिए उन्होंने अलग-अलग जानवरों का वेश धारण किया और उसके टुकड़े ढूंढ़कर उसे जीवित कर दिया।

उसे यह भी कहा कि वह अपने ससुराल वालों के साथ न रहे और उसने वैसा ही किया। 

वह अपने ससुराल वालों से अलग रहने लगा। यह सब उसकी पत्नी के ऋषि पंचमी व्रत की शक्ति के कारण संभव हुआ।

 

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